खास आपके लिये श्री मन्थिर राम चौहान जी की कलम से


* *स्वजातीय* *गण* "" *चौहान* ,, *देवदास* *और* *गंधर्व* "" *को* *जाने* 🌳🥦
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🙏🏾👏🏾  सामाजिक साथियों ,, आप सभी जानते है कि हमारे जाति समाज मे मुख्यतः तीन समाजिक  संगठन  नाम "" *देवदास* , *गन्धर्व* , *और* *चौहान* ,"" प्रचलित  है ।। ये नाम क्यों और कैसे पड़ा,,  इससे पहले मै आपको एक और जानकारी दे दूँ कि  सभी जाती समाज मे भौगोलीक स्थिति ,व परिस्थिति के अनुसार सम्पूर्ण मूलनिवासी समाज को हमारे पिछले "" पूरखा-पूर्वजों "" ने दो भागो में बाँट दिया गया  है  🌳।


👏🏾   सिन्धू सभ्यता पाषाढ़ काल में "" तैंतीस गढ़ कोट के चलते ,, *हड़प्पा* -- *मोहनदादा* *जोदड़ो* *काल* में इन मैदानी इलाका को "" *जम्मूद्वीप* *महाकौशल* *राज* *और* *गढ़कोट* के जंगली,, पहाड़ी इलाकों के नाम से जाना जाता था,, इसको  *झाकर* *गढ़कोट*( *झाखराखण्ड* )"" के नाम से जाना जाता था,, जिसे *मुगल* *काल* के बाद "" *महाकौशल* *राज* के तरफ से ""  *कोसरिया* "" और ,, गढ़कोट झाखराखण्ड के  तरफ से "" *झरिया* "" का सामाजिक समूह मैदानी या समतल जगहों पर निवास करते प्रचलित  किये  हैं  उन्हे "" *झेरिया* ""  व जो समूह वनांचल में निवास करते आ रहे  हैं उन्हे "" *कोसरिया* "" का नाम देकर अपने-अपने जाति समूह में "" *झेरिया* -- *कोसरिया* "" नाम रखा गया और  जाना  गया है 🌳

👏🏾  हमारे जाति मे जिसे "" *झेरिया* *गाँड़ा* व  *कोसरिया* *गाँड़ा* "" कहा जाता है ,, ऐसा ही सभी समाज में होता  है । समाजिक बैठकों मे यह तय होना चाहिए कि जितने भी "" झेरिया गाण्डा समाज ""  हैं  उन्हें "" झेरिया गाण्डा समाज""और  जो कोसरिया  से  हैं  उन्हे "" कोसरिया गाण्डा समाज ""  के नाम से पूरे छत्तीसगढ़ में   जाना और पहचाना ,, जाना  चाहिए ,, 🌳

👏🏾  देश के आजादी के बाद से "" देवदास,, गंधर्व और चौहान ,, सरनेम को जाति समाज का नाम देकर,, छत्तीसगढ़ राज्य की दर्जा देकर ,,देवदास समाज ,, गंधर्व समाज,, चौहान समाज ""  के नाम से पिछले 70-80 के दशक से हम सभी सामाजिक संगठन  समाजिक संरचना  करते चले आ रहे हैं,,🌳

👏🏾  जबकि  "" देवदास ,, चौहान ,, गंधर्व  शब्द "" मनुवादी ब्राम्हणवाद हिन्दू इतिहास से  निकाला गया शब्द  है ,, ये शब्द हमारे जाति समाज में नहीं है लेकिन फिर भी हम लोग उसे अपने-अपने विचार-विमर्श से "" जाति समाज "" का नाम देकर सामाजिक संरचना करते चले आ रहे हैं ,, मूल जाति को छिपाकर "" उपनाम की संज्ञा "" पर समाज चलाते आ रहे हैं,, लेकिन  चौहान संगठन को अभी तक "" झेरिया-कोसरिया के बारे में बिलकुल जानकारी नहीं हो पायी है 🌳

👏🏾  छत्तीसगढ़ में "" *झेरिया* - *कोसरिया*  *गाण्डा* *समाज* के अनेक संगठन बनने लगा है ,, मूल जाति को छिपाकर  ,, उप नाम रखने के चक्कर में  पूरा छत्तीसगढ़ राज्य के  "" *चौहान* ,, *देवदास* *और* *गंधर्व*  "" आपस में कोई एक  उपनाम नहीं रख पाये हैं ,,लेकिन  रायपुर  दुर्ग बस्तर  ,, रायगढ़  बिलासपुर और  सरगुजारायगढ़  सम्भाग के स्वजाति पदधिकरियो ने बैठक के दौरान ""  गाण्डा  जाति "" के  स्थान  पर  एक  ""साफ व सुंदर नाम ""  देने  की सोची  ,, इससे यह  निष्कर्ष निकला कि हम  "" गाण्डा जाति समाज ""  के  लोगों  के द्वारा  वाद्ययंत्रों  से  भगवान की  पूजा अर्चना  करते  हैं  और कहीं-कहीं पर वाद्ययंत्रों का निर्माण स्वयं करते थे ,, जिन्हें छुवाछूत  की भावना पनपने लग गई ,, 🌳

👏🏾  क्योंकि प्रकृति पूजा-पाठ में  वाद्ययंत्रों का प्रयोग दूसरे तरह से होता था ,, उसे अपना भरण-पोषण के लिए  बिजनेस का जरिया बना लिए  और वाद्ययंत्रों का रुपरंग को ही बदल दिया गया ,, जिसे मूलजाति के आधार पर "" गांड़ा या गण्डवा ""  बाजा के नाम से जाने जाते हैं ,, फिर भी  आज  हमारे  ही  वाद्ययंत्रों से  पूजा--अर्चना का  प्रयोग  होता है  🌳

👏🏾   देवदासी समूहों के अनुसार ,, हम देवता के दास है,, उसके पूजा-पाठ  करते हैं ,, तो  हम  देवदास  कहे जायेंगे,, और  झेरिया गाण्डा समाज "" है, उन्हे देवदास के नाम से जाना जायेगा  ,,ऐसा विचार-विमर्श कर  समाज का नाम देवदास समाज  रखा गया ।।🌳

👏🏾  छ ग देवदास समाज का दक्षिण भारत के देवदासी  प्रथा से किसी भी  प्रकार का  कोई  सम्बन्ध नही  है, देवदासी एक मनुवादी ब्राम्हणवाद हिन्दू प्रथा   है ,, जो अंग्रेज शासन काल तक चला है,, और  आज भी  दक्षिण भारत में प्रचलित है ,, लेकिन नाम तो उसी प्रथा के आधार पर नाम रखा गया है ,, लेकिन देवदास  नाम एक संयोग मात्र है 🌳

👏🏾   गन्धर्व ( गण्डवा) गाण्डा जाति जिसका मुख्य  कार्य  "" प्राकृतिक पूजा-पाठ में पूजा के दौरान "" बाद्ययंत्रों का प्रयोग करते रहने से "" बजगरी या  बाजा बजाने वाले ,, संगीत की विशेष अभिररुचि  रखने  वाले यह समाज  ,, अनेक  अदर सामाजिक  वर्ग  का प्रिय जन  माने जाने लगे है कि जो "" मनुवादी ब्राम्हणवाद हिन्दू इतिहास के शास्त्रों "" मे "" गन्धर्व जाति "" का उल्लेख है ,, जिनका  कार्य भी  वाद्य--संगीत व नृत्य माना गया है ,, 🌳

👏🏾  इसलिए हम ऐसा सोचते हैं कि ,, हमारे जाति समाज भी  उन्ही "" गन्धर्वो ""  की सन्तान  है और वो हमारे  पुर्वज हैं,, पर ऐसा नहीं है ,, वो मनुवादी ब्राम्हणवाद अंधविश्वास काल्पनिक इतिहास के लोग हमारे "" पूरखा-पूर्वज नहीं हो सकते,, साथ ही हम ऐसा मानते हैं कि  "" अंग्रेजी में गंधर्व शब्द का अप्रभ्रंश शब्द "" गाण्डा "" है 🌳

🎄 चौहान ,, शब्द का नाम ,, पृथ्वीराज चौहान शासन काल के समय उनके सैनिक दल बनकर रक्षक के रूप में सेनादल के काम करते थे,, इसलिए "" क्षेत्रपाल,, कोटवार और चौहान ""  का नाम दिया गया है ,, उस समय कपड़ा बुनाई का भी काम करते थे ,, तो बुनकर नाम भी दिया गया है 🌳

🎄 जबकि ऐसा मानने लगे हैं कि  "" गन्धर्व ही गान्डा "" का वास्तविक नाम है ,, पर ऐसा समझना और लिखना हमें अपने "" **इतिहास* ,, *संस्कार*  *और*  *अधिकार* "" *की* *जानकारी* *की* *कमजोरी* *है* ,, क्योंकि ना तो हम अपने खुद के समाज-परिवार के पूरखा-पूर्वज के शैवसंस्कृति इतिहास को नहीं जानते,, और ना ही हम अपने माता-पिता रुपी देवी-देवताओं और तीज-त्योहारों को नहीं जानते 🌳

👏🏾 ,, हम सिर्फ ,, मनुवादी ब्राम्हणवाद हिन्दू इतिहास के आधीन में रहकर ,, दूसरे के देवी-देवताओं पर आश्रित रहकर हम दास और गुलाम रहकर ,,हम अपने "" आस्थाऔर विश्वास "" को दूसरों के देवी-देवताओं पर न्यौछावर कर अंधविश्वास के देवी-देवताओं को मानते चले आ रहे हैं ,, जहां पर हमारा कोई भी पहचान नहीं है 🌳

🙏👏 जय सगा सेवा जोहार 👏🙏
        🙏👏 जयबुढ़ादेव👏🙏
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